कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ


मेरे मुल्क की बदनसीबी में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...

जात धर्म की राजनीति में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


बीती रात को चौराहे पर, एक अक्स की साँस रुकी थी

दर्पण के बिखरे टुकडों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


नींद में शायद, चाँद रात में, एक रूह की काँप सुनी थी

सरगम के टूटे साजों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


आज सुबह सहरी से पहेले, आसमान में घटा सुर्ख थी

कुचले फूलों के रंगों में, कौन है हिंदू , कौन मुसलमाँ...


आजादी की सालगिरह पर, एक ज़फर की मौत हुई थी

अमर शहीदों के बलिदानों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


नदी किनारे, ज़र्द रेत पर, नंगी लाशें पड़ी हुई हैं

सौ करोड़ इन बेगुनाहों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


मेरे वतन के परवाजों में, मार मज़हब की कब तक होगी

जन गन मन अधिनायक जय हे, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ

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