हाल ही में आगरा से एक साप्ताहिक जागता शहर शुरुआत हुई। इस पत्रिका का नाम सुनने में जितना अच्छा लगा उतनी ही ये पत्रिका भी शानदार है। दरअसल पत्रिका का नाम सुनते ही जेहन में कहानी किस्सों का खाका बनने लगता है लेकिन जब जागता शहर का पहला अंक मेरे हाथ में आया तो मुझे अपने ख्याल बदलने पड़े। कवर स्टोरी पुलिस ने फोजी को मारा एक दम नयापन लिए थी ये कोई कहानी नही बल्कि मथुरा के अशोक फोजी की हकीकत थी। इस स्टोरी ने खोजी पत्रकारिता का नमूना होने के साथ साथ पुलिस के कारनामे को भी उजागर किया। इसी तरह से इसके सभी लेख हकीकत को बयां कर रहे थे। जागता शहर देखने के बाद खुशी हुई की समाचार चैनलों और अख़बारों से जो सच की उम्मीद ख़त्म हो रही है उसे इस पत्रिका के माध्यम से लोगों तक पहुँचाने का शानदार प्रयास किया गया है। इस पूरी मुहीम का आगाज़ किया है हिन्दी पत्रकारिता के स्तम्भ माने जाने वाले अनिल शुक्ल ने। अपने तीस वर्षों के अनुभव के साथ श्री शुक्ल एक नयी टीम के साथ मैदान में हैं। उन्हें उम्मीद है की ये पत्रिका पाठकों की कसोटी पर खरा उतरेगी। उनके साथ वरिष्ठ पत्रकार जे पी त्रिपाठी के अलावा कई नामी चेहरे काम कर रहे है। जल्द ही इस पत्रिका के और एडिशन बाज़ार में होंगे। इसका विस्तार तीन राज्यों में किया जा रहा है जिसमे उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान और मध्य प्रदेश भी शामिल है। जागता शहर का प्रकाशन ऑफ़बीट मीडिया पब्लिकेशन आगरा कर रहा है.

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