अमीर धरती,गरीब लोग पर केंद्रित पहला सेटेलाईट चैनल शुरु
अमीर धरती कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के पहले सेटेलाइट चैनल ज़ी 24 घंटे छत्तीसगढ़ का योग गुरू बाबा रामदेव ने कल बुधवार को विधिवत शुभारंभ किया। इस मौके मुख्यमंत्री डा रमन सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल,विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पांडे समेत जीन्यूज के आला अधिकारी मौजूद थे।राज्य के पहले सेटेलाइट चैनल ज़ी 24 घंटे छत्तीसगढ़ की शुरुआत बाबा रामदेव और मुख्यमंत्री डा सिंह ने दीप जलाकर की। इससे छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता के इतिहास में नया अध्याय जुड़ गया जब देश के जाने माने ज़ी समूह ने यहां में रीजनल चैनल लांच किया। छत्तीसगढ़ की खबरों पर आधारित यह पहला सेटेलाइट चैनल है और ज़ी नेटवर्क का यह 35 वां चैनल है।इस मौके पर जानी मानी पंड़वानी गायिका तीजन बाई ने आकर्षक कार्यक्रम प्रस्तुत किया। सारेगामा फेम सुमेधा कर्महे ने भी ए मेरे वतन के लोगों गीत सुना कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। एस बी मल्टीमीडिया के चेयरमेन सुरेश गोयल ने साफ किया कि चैनल साफ सुथरी पत्रकारिता का हमेशा ख्याल रखेगा। उन्होने कहा कि चैनल के लिए जनता का मत सर्वोपरि होगा और समस्त तथ्यों की जानकारी उपलब्ध कराएगा। उनके इरादे बुलंद हैं, उसे कोई डिगा नहीं सकता।उद्घाटन मौके पर बाबा रामदेव ने चैनल शुरू करने के लिए गोयल परिवार को शुभकामना देते हुए उम्मीद जताई कि इसमें छत्तीसगढ़ की हितों का ध्यान रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह गोयल समूह ने इमानदारी और संघर्षो के साथ स्थान बनाया है, उससे साफ है कि यह चैनल भी अपना अलग स्थान बनाएगा। बाबा रामदेव ने कहा कि छत्तीसगढ़ में सृजनात्मक क्षमता है। बड़ा खूबसूरत राज्य है। प्राकृतिक संपदाओ से भरपूर यह राज्य देश ही नहीं पूरी दुनिया में अव्वल हो सकता है।मुख्यमंत्री डा सिंह ने कहा कि चैनल के लिए बधाई देते हुए उम्मीद जताई कि चैनल के शुरू होने से राज्य का खूबसूरत पक्ष भी सामने आएगा। राज्य की खबरों में ज्यादातर हिंसा और नक्सलवाद को स्थान दिया जाता है जबकि प्रदेश की पहचान लोककला, पंथी ददरिया और आदिवासी की संस्कृति के कारण भी है। आने वाले दिनों में राज्य देश को सबसे अधिक ऊर्जा देने वाला राज्य बनेगा।इस मौके पर ज़ी समूह के चेयरमेन लक्ष्मी गोयल ने कहा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के आने से क्रांति आई है। जहां तक समाचार पत्र नहीं पहुंच पाते, वहां भी चैनल की वजह लोगों को जानकारी मिल रही है। चैनल ने जागरूकता लाने में भी अपना योगदान दिया है। उन्होने उस दौर करते हुए कहा कि जब लोग टीवी के लिए तरसते थे। अब यही चैनल मील का पत्थर साबित हो रहे हैं।कार्यक्रम की शुरूआत में अतिथियों का स्वागत चैनल के डायरेक्टर सुरेश गोयल, राजेंद्र गोयल, दिनेश गोयल, बजरंग गोयल और पवन गोयल ने किया। कार्यक्रम में बाबा रामदेव, मुख्यमंत्री के अलावा मुख्य रूप से पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश बैस, पीडब्ल्यू मंत्री राजेश मूणत, प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा, सांसद गिरिश सांधी और महापौर सुनील सोनी सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।

खबरों की बेहतरी की कामना के साथ आवारा बंजारा की बधाई व शुभकामनाएं

सियासत ... सौदे ........ और सवाल ?


एक बार फिर संसद शर्मसार हुई। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिर से दुनिया के सामने नंगा हो कर खडा हो गया। हालांकि यह पहली बार नही की भारत की संसद में कोई शर्मिंदा कर देने वाली कोई घटना घटी हो पर जिस तरह ये सब हुआ, शायद देश हमारे नेताओं को कभी माफ़ नहीं कर पाएगा।
हुआ यह की सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लगातार विपक्ष की ओर से सरकार पर सांसदों की खरीद फरोख्त के आरोप लगे, जिसके जवाब में प्रधानमन्त्री ने कहा की सबूत पेश करें और जवाब में भाजपा के तीन सांसद लोक सभा के अन्दर आए और पूरे देश के सामने ( लाइव ) निकाल कर रख दिए नोटों के बण्डल और चिल्ला कर कहा की ये उन्हें घूस के तौर पर दिए गए।
हो सकता है की ये रूपए उनको दिए गए हो, या फिर ना भी दिए गए हों पर दुर्भाग्य ये रहा कि ये सब देश की गरिमा की प्रतीक भारतीय संसद के अन्दर हुआ। हम सब जानते हैं कि ये सब जोड़ तोड़ होती है पर शायद कभी सोचा नही था कि ये सब टीवी पर लाइव देखने पर मिलेगा।
इधर भाजपा के सांसद अमर सिंह और अहमद पटेल पर घूस देने का आरोप लगा रहे हैं तो अमर सिंह, मुलायम सिंह और कांग्रेस सफाई देने में जुट गई है .................................... टीवी चैनलों को साल का सबसे बड़ा मसाला मिल गया है और आम आदमी परेशान है कि इन लोगों को उसने देश की रक्षा और उत्थान के लिए चुन कर भेजा है ?
अभी हाल ही में एक टीवी न्यूज़ चैनल ज्वाइन किया है और आज की बड़ी ख़बर पर लोगों का चेहरा खिला है कि आज टी आर पी का दिन है पर मेरा जी कुछ भारी हो रहा है। देख कर सोच रहा हूँ कि दुनिया शायद बहुत प्रोफेशनल हो गई है। कल के दुश्मन आज के दोस्त ....... और कल के भाई आज ..................... क्या मतलब इतना मतलबी बना देता है ?
कहीं हम सब ऐसे हो गए हैं क्या ?
क्या सच हमेशा इतना ही कड़वा होता है ?
बशीर बद्र साहब के कुछ शेर याद आ गए हैं तो रख ही देता हूँ .....
जी बहुत चाहता है सच बोलें क्या करें हौसला नहीं होता ।

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।

वो बड़े सलीके से झूठ बोलते रहे
मैं ऐतबार ना करता तो और क्या करता

कभी सोचा नहीं था कि हमारे प्रतिनिधि देश के विकास के प्रतिरोधक बन जाएँगे ........... क्या दुर्भाग्य वाकई इतना दुर्भाग्यशाली होता है ?
...................................................

"आतंकवाद"

आतंकवादीयों को मुह तोड़ जवाब ,
अखीर कब दिया जाएगा,
क्या यूँही देखते रहेंगे हम ???
और वक्त निकल जाएगा...........
भगवान ने तो बस इंसान बनाये ,
फ़िर ये आतंकवादी कहाँ से आए???
इस सवाल का जवाब कब
और किस्से लिया जाएगा .......
गुमराह करके नौजवानों को
आतंक का जहर पिलाते हैं जो
उन्हें प्रेम की धारा का अम्रत
आखिर कब पिलाया जाएगा???
जिस्म पर बम लगाकर,

हमे बर्बाद करते है जो,
उन्हें जिन्दगी का सबक,

आखिर कब दिया जाएगा???
ह्थीयारों हथगोलों से ,

खून की होली खेल रहें है जो,
उन्हें इंसानीयत का मतलब,

कब समझाया जाएगा ???
रोकना होगा हमे

इस बढ़ती हुई बीमारी को
वरना ये आतंकवाद का सांप

हम सबको डस जाएगा ..........

जब तक न छेद हो

जब तक न छेद हो
जल रिसता नही है
जब तक न भेद हो
किला ढहता नही है

जब तक न फूट हो
घर नही टूटता
जब तक न शुबह हो
छूटता हाथ नही है

दुश्मन को माफ करना
है अपना कतल ही
सांप से तो डसना
कभी छूटा नही है

घर अपना बचाना तो
मालिक का काम है
औरों के भरोसे तो
इसे होना नही है

घर अपना मानते हो,
बचालें इसे मिलकर
किसी एक के बस का
ये काम दिखता नही है ।

" मैं दूंढ लाता हूँ"




" मैं दूंढ लाता हूँ"

अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"
किसी बस्ती की गलियों में किसी सहरा के आँगन में ...
तुम्हारी खुशबुएँ फैली जहाँ भी हों मैं जाता हूँ
तुम्हारे प्यार की परछाइयों में रुक के जो ठहरे ............
सफर मैं जिंदिगी का ऐसे ख्वाबों से सजाता हूँ
तुम्हारी आरजू ने दर बदर भटका दिया मुझको ............
तुम्हारी जुस्तुजू से अपनी दुनिया को बसाता हूँ
कभी दरया के साहिल पे कभी मोजों की मंजिल पे........
तुम्हें मैं ढूँडने हर हर जगह अपने को पाता हूँ
हवा के दोष पर हो कि पानी की रवानी पे .............
तुम्हारी याद में मैं अपनी हस्ती को भुलाता हूँ
मुझे अब यूँ ने तड़पाओ चली आओ चली आओ ......
चली आओ चली आओ चली आओ चली आओ
अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"...........

"तुम्हें पा रहा हूँ"


"तुम्हें पा रहा हूँ"
तुम्हें खो रहा हूँ तुम्हें पा रहा हूँ,
लगातार ख़ुद को मैं समझा रहा हूँ....
ना जाने अचानक कहाँ मिल गयीं तुम,
मैं दिन रात तुमको हे दोहरा रहा हूँ........
शमा बन के तुम सामने जल रही हो,
मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ ....
तुम्हारी जुदाई का ग़म पी रहा हूँ,
युगों से मैं यूँ ही चला जा रहा हूँ...
अभी तो भटकती ही राहों में उलझा,
नहीं जानता मैं कहाँ जा रहा हूँ....
नज़र में मेरे बस तुम्हारा है चेहरा,
नज़र से नज़र में समां जा रहा हूँ......
बेकली बढ़ गयी है सुकून खो गया है,
तुझे याद कर मैं तड़प जा रहा हूँ..........
कहाँ हो छुपी अब तो आ जाओ ना तुम,
मैं आवाज़ देता चला जा रह हूँ ........

"आशनाई"


"आशनाई"

'नज़र से नज़र"
कभी मिलाई तो होती....
दिल की बात कभी हमसे भी,
बनाई तो होती....
क्यूँ कर रही शबे-फुरकत से'
आशनाई सारी रात.....
कभी मेरी तरह अंधेरों मे,
"आईने से आंख लडाई तो होती "

(शबे फुरकत- विरह की रात )

"तेरी चाहत"


"तेरी चाहत"

तेरी हर अदा पे मुझे बस प्यार आता है,
जब मेरे साथ तू होती है करार आता है..
तेरी आँखें है सनम, या के हैं जाम-ऐ-शराब,
तेरी नज़रों को मैं देखूं तो खुमार आता है..
तू मेरे सामने है, ख्वाब हो , बेदारी हो,
अपनी बांहों में लिए तुझ को चला जाता हूँ..
तुझसे मिलने पे जो आजाए जुदाई का ख़याल,
दिल में तूफ़ान सा उठता ही चला जाता है..
तेरी चाहत की मेरे दिल में है हद कितनी,
कहाँ ग़ज़लों में या अल्फाज़ में कह पाता हूँ ..

कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ


मेरे मुल्क की बदनसीबी में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...

जात धर्म की राजनीति में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


बीती रात को चौराहे पर, एक अक्स की साँस रुकी थी

दर्पण के बिखरे टुकडों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


नींद में शायद, चाँद रात में, एक रूह की काँप सुनी थी

सरगम के टूटे साजों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


आज सुबह सहरी से पहेले, आसमान में घटा सुर्ख थी

कुचले फूलों के रंगों में, कौन है हिंदू , कौन मुसलमाँ...


आजादी की सालगिरह पर, एक ज़फर की मौत हुई थी

अमर शहीदों के बलिदानों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


नदी किनारे, ज़र्द रेत पर, नंगी लाशें पड़ी हुई हैं

सौ करोड़ इन बेगुनाहों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


मेरे वतन के परवाजों में, मार मज़हब की कब तक होगी

जन गन मन अधिनायक जय हे, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ

दर्द

इस दर्द को जान लें अब हम
दर्द कितनी तरह का होता है

एक दर्द चोट का होता
एक दर्द मन का होता है ।
एक दर्द है पराया तो
एक दर्द अपना होता है ।

एक दर्द भूल जाता है
एक दर्द रिसता रहता है
एक दर्द छुरी सा है अगर
एक दर्द मीठा होता है ।

एक दर्द दूसरे का दिया
एक दर्द अपना देता है
एक दर्द की दवा होती
एक दर्द सदा रहता है

इस जिंदगी का दर्दों से
एक गहरा रिश्ता होता है
इस दर्द के बिना उसका
अस्तित्व कहाँ बचता है

सदा-ऐ-हिंद

मेरा मुल्क मेरा वतन गुलसितां था

वो पिछले दिनों था बदला हुआ सा

यहाँ राम भी थे

अयोध्या बसा था

ये बंजर बियाबां

ये किसका गुमां था

ये नानक की भूमि

यशोदा की बेटी

खड़ी बीच चकले

सदाएं हैं देती

ये गांधी के शव हैं

ये बिस्मिल की लाशें

मरे सारे इकबाल

किसको तलाशें

मेरा मुल्क मेरा वतन हिन्दोस्तां

बचा लो इसे ये तुम्हारा गुलसितां

apane मनोहारी अतीत के मुगालते में हम उन बुर्जुआ विचारकों की लीद ढो रहे हैं जो बर्बरता से सिर्फ दो सीढ़ी ऊपर थे. उनकी याद में हम जाति, सम्प्रदाय, रंग, धर्म और जाने किस-किस पर भेद कर लेते हैं.

फिलहाल दुनिया की सबसे बड़ी परेशानी धर्म है. दुनिया भर का हर धार्मिक व्यक्ति को पूरी तरह विश्वास है कि उसका धर्म ही आखिरी सत्य है और विश्व के बाकी 5-करोड़ बाशिंदे सीधे दोजख/नर्क/Hell/Your version में जाने वाले हैं.

सभी को विश्चास है कि दुनिया को परमात्मा के उनके संस्करण ने बनाया, और सभी मनुष्यों का रचेयता वो शक्तिशाली खुदा सभी मनुष्यों का फैसला करेगा.

लेकिन कोई धर्म हो, दुनिया के अधिसंख्य लोग उसके विधर्मी होंगे. फिर क्या मजाक है वह परमात्मा जिसपर दुनिया के ज्यादातर लोगों को यकीन नहीं?

कोई साधारण बुद्धी रखने वाला मनुष्य भी थोड़ा सोच-विचार कर इस असलियत को समझ सकता है. फिर क्या कारण है इस अंध-विश्वास का?

1. हम हैं खुदा की भेड़ें/गैयां
हर धर्म का जोर है निश्शंक भरोसे (unquestioning faith) पर. आपको आदेश है ईश्वर की भेड़े बनने का, जिन्हें जहां मर्जी हो धर्म के ठेकेदार हांक ले जायें. जहां आपने सवाल किया आप काफिर, हेरेटिक, धर्मच्युत, और न जाने क्या-क्या हो जायेंगे. जब-जब सवाल पैदा होता है, तब-तब धार्मिक ठेकेदार धर्मांध मूढ़ों द्वारा दमन करवाते हैं (आगे के लेखों में जानेंगे इसके उदाहरण).

सबसे पहले तो धर्म पर शंका करो, खुदा पर शंका करो, पूज्य किताबों पर शंका करो.

2. बचपन से ब्रेनवाश
हर बच्चा खुला (या खाली) दिमाग लेकर पैदा होता है. उसमें आप जो रंग भर दें वही खिल उठेगा. किसी को यीशू पर यकीन दिलाया, तो किसी को मुहम्मद पर, बाकी जो बचे राम, कृष्ण, शिव और न जाने कितनों में बंट गये. सबको बचपन से सिखाया कि खुदा है, बैठा है आपके सरों पर, इनसे डर के रहना! तो सब ने कर लिया विश्वास. बड़े होकर अपने बच्चों के सामने भी दोहरा दिया.

बचपन से चूहा दिखाकर किसी को कहा जाये कि बेटा यह हाथी है, तो वह बच्चा उसे हाथी ही कहेगा, चूहा नहीं. और जब बड़ा होकर कोई अनजाना उसे कहेगा कि ये तो चूहा है तो बच्चा चौंक उठेगा, सहसा विश्वास नहीं करेगा. जब 10-15 लोग यही बात दोहरायेंगे तब समझेगा कि परिवार वालों ने उसका पप्पु बना दिया.

यही हाल धर्म का है. फर्क इतना है कि आस-पास के सभी लोगों का पप्पु बन चुका है, और कोई यह बताने वाला नहीं कि जिसे तुम हाथी समझे बैठे हो, वह तो चूहा है. एकाध जो आवाजें उठतीं हैं वो 'हाथी! हाथी!' चिल्लाने वालों में दब जातीं हैं.

पप्पा ने बताया इसलिये पप्पु मत बनो. शक करो, क्योंकि वो भी इन्सान हैं, उनसे गलती हो सकती है.


सदी के पार

सदी के पार

रेत की तासीर
में है आंच,
बारिश
धूप की है
मैं नदी के पार
जाना चाहता हूँ।

मैं कोई
पाषाण का टुकड़ा नही हूँ
आदमी हूँ ,
आदमी हूँ इसलिए
संवेदना में हांफता हूँ।
हांफ कर कुछ पल
ठहरने को भला तुम
हार का पर्याय
कैसे मान लोगे ।

मैं शिशिर का
ठूंठ , पल्लवहीन
पौधा भी नही हूँ
बीज हूँ
मुझमें उपजने की
सभी संभावना
मौजूद हैं जब,
क्योँ करूँ स्वागत
किसी बांझे दशक का।
मैं सदी के
पार जाना चाहता हूँ ।

हाल ही में आगरा से एक साप्ताहिक जागता शहर शुरुआत हुई। इस पत्रिका का नाम सुनने में जितना अच्छा लगा उतनी ही ये पत्रिका भी शानदार है। दरअसल पत्रिका का नाम सुनते ही जेहन में कहानी किस्सों का खाका बनने लगता है लेकिन जब जागता शहर का पहला अंक मेरे हाथ में आया तो मुझे अपने ख्याल बदलने पड़े। कवर स्टोरी पुलिस ने फोजी को मारा एक दम नयापन लिए थी ये कोई कहानी नही बल्कि मथुरा के अशोक फोजी की हकीकत थी। इस स्टोरी ने खोजी पत्रकारिता का नमूना होने के साथ साथ पुलिस के कारनामे को भी उजागर किया। इसी तरह से इसके सभी लेख हकीकत को बयां कर रहे थे। जागता शहर देखने के बाद खुशी हुई की समाचार चैनलों और अख़बारों से जो सच की उम्मीद ख़त्म हो रही है उसे इस पत्रिका के माध्यम से लोगों तक पहुँचाने का शानदार प्रयास किया गया है। इस पूरी मुहीम का आगाज़ किया है हिन्दी पत्रकारिता के स्तम्भ माने जाने वाले अनिल शुक्ल ने। अपने तीस वर्षों के अनुभव के साथ श्री शुक्ल एक नयी टीम के साथ मैदान में हैं। उन्हें उम्मीद है की ये पत्रिका पाठकों की कसोटी पर खरा उतरेगी। उनके साथ वरिष्ठ पत्रकार जे पी त्रिपाठी के अलावा कई नामी चेहरे काम कर रहे है। जल्द ही इस पत्रिका के और एडिशन बाज़ार में होंगे। इसका विस्तार तीन राज्यों में किया जा रहा है जिसमे उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान और मध्य प्रदेश भी शामिल है। जागता शहर का प्रकाशन ऑफ़बीट मीडिया पब्लिकेशन आगरा कर रहा है.

एक सवाल

आखिर क्यों ये सवाल बार बार मुझे सताता है..... क्यों एम् पी स्कैंडल इन धमाको में दब जाता है.... क्यों सारी मीडिया और नेताओ के मुह से केवल आतंकियों के बोल फूटते है..... अगर यही कहा इस तरह जाए की धमाके आतंकियों ने नही इन दलाल नेताओ ने कराये तो...... तो कोन देगा इस सवाल का जवाब

hak.............

mago ye apka hak hai....................... janane ka hak

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