प्रस्तुतकर्ता
janane_ka_hak
पर
5:57:00 pm
जब तक न छेद हो
जब तक न छेद होजल रिसता नही है
जब तक न भेद हो
किला ढहता नही है
जब तक न फूट हो
घर नही टूटता
जब तक न शुबह हो
छूटता हाथ नही है
दुश्मन को माफ करना
है अपना कतल ही
सांप से तो डसना
कभी छूटा नही है
घर अपना बचाना तो
मालिक का काम है
औरों के भरोसे तो
इसे होना नही है
घर अपना मानते हो,
बचालें इसे मिलकर
किसी एक के बस का
ये काम दिखता नही है ।
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