आज के अध्यापक .....

आजकल मैं एक विशेष अनुभव का लाभ अर्जित कर रहा हूँ जिसका पुण्य लाभ मेरे आदरणीय शिक्षक जनो को जाता है। जैसा की विदित है की मैं इस वर्ष अपना परास्नातक पूर्ण कराने वाला था। लेकिन मेरे आदरणीय शिक्षक जनोंके विशेष अनुग्रह और विश्वविद्यालय की कार्यशैली के चलते मुझे अपना इरादा अगले वर्ष के लिए स्थगित करना पड़ा । लो मैंने ये तो बताया ही नही की मेरा इरादा क्या था। अरे ऐसा कुछ नया नही था बस सोचा था कुछ एक लाखो की भीड़ में हम भी आ जायेंगे पर हमारे आदरणीय शिक्षक जनों को ये मंजूर नही था। उन्होंने हमारे भले के लिए सोचा और हमारे शोध के प्रयासों पर विराम लगा दिया। शायद उन्हें लगा कि शोध तो फालतू कि प्रक्रिया है जिसका अंत बेकारी से ही होना है तो क्यों शोध किया जाए, हम ये अनुग्रह तो तुम पर वैसे ही रिजल्ट नही निकालकर कर रहे हैं।
अब कल का ही विषय देखिये कि हमारे शोध करने के विषय पर उन्होंने कितने ज्ञान की बात उन्होंने हमें बताई। उनके अनुसार हमारे जनसंचार विषय पर शोध की कीमत ५ लाख है जिसमे से १ लाख गाइड को दिया जाता है। अब देखिये न हमें तो बैठे बिठाये उन्होंने शोध का एक विषय दे दिया अब मैं आजकल पता करने में लगा हू की कोण से संसथान में इस कीमत पर शोध की बोली लग रही है।
बेचारे एक विषय पर बहुत परेशां थे की शोध कराने के लिए हमें मिलाता क्या है फालतू में सर खपाना पड़ता है अब मैं सरकार से सिफारिश करने की सोच रहा हूँ कि इन शोध कराने वाले सभी आदरणीय शिक्षक जनों को कुछ धनराशी प्रदान करवाने कि व्यवस्था कराएँ क्यूकि ये पढ़ने के लि तो होते ही नही हैं वह सो उनके मिलाने वाले वेतन को ख़त्म किया जा सकता है हालाँकि इस सुझाव पर मेरे शुभचिंतक आदरणीय शिक्षक जन नाराज हो गए। मेरे एक मित्र का कहना है बेटा इस सुझाव का फल तुझे आने वाले रिजल्ट में पता चलेगा । मुझे भी पता चला है आजकल आदरणीय शिक्षक जन मेरा विशेष ख्याल रख रहे हैं।
गर आपके पास मेरे लिए कुछ सुझाव हो तो बताइयेगा

भगवान

एक बेचारा भगवान,
कितना बोझ संभालेगा।
ये भी दे दे वो भी दे दे,
इन्सान कभी न हारेगा।
तरस आता है उपरवाले पर,
क्यों बनाया तुने इसको।
तीन ही चीजे लाता नीचे,
पेड़ पोधे और जानवर।
एक बेचारा उपरवाला,
कितनी बार उठाएगा।
उठाकर ये इन्सान अकेला,
फ़िर से ठोकर खायेगा।
हाथ उठाले यदि वो सर से,
तो क्या इन्सान रह जाएगा।
अँधेरी अपनी इस दुनिया में ,
कैसे दिया जलाएगा ।
एक बेचारा भगवान हमारा,
तब भी साथ निभाएगा ...

( a student of master of journlism)

साभार http://ajaykumarjha1973.blogspot.com

शुरू शुरू में जब यहाँ इस अंतरजाल से नाता जुडा था तो सब कुछ नया था, ऐसे में जाहिर था कि मैंने भी वही सुरक्षित रास्ता अपना रखा था। यानि चुपचाप आओ , अपना काम करो और निकल लो। उन दिनों से ,( ये सिलसिला अभी भी जारी है), जब भी अपना ई मेल अकाउंट खोलता तो दो नियमित मेले जरूर हुआ करती थी। एक वो सूचना जिसमें कि अपनी पोस्ट छपने की जानकारी दी होती थी दूसरी वो जिसमें लिखा होता था, अमुक तारीख को अंतरजाल से जुड़ने वाले इतने नए चिट्ठों का टिप्प्न्नी द्वारा स्वागत कीजिये। मैं भी ठीक वैसे ही करता था जैसे हम में से बहुत से लोग करते हैं या अब भी कर रहे होंगे। बिना पढ़े ही डीलीट कर दिया।

किंतु पिछले दिनों न जाने अचानक मुझे क्या हुआ कि मैं उन चिट्ठों को खोल खोल कर पढने लगा। सच कहूँ तो अपने आप को ही धन्यवाद कहता रहता हूँ कि अचानक वो ख्याल मेरे मन में आ गया। तब से तो मानिये जैसे ये एक आदत सी बन गयी और मैं पहला काम यही करता हूँ। यकीन मानें दिल को इतना सुकून मिलता है जब मैं किसी को पहली टिप्प्न्नी करता हूँ, या उसे फोलो करने वाला पहला व्यक्ति बँटा हूँ। न जाने कितने सारे दोस्त बना लिए हैं अब तक। कई सारी छोटी छोटी बातें जब देखने पढने को मिलती हैं तो अपने पुराने दिन भी याद आ जाते हैं, मसलन कई ब्लोग्गेर्स अनजाने में ख़ुद के ब्लोग्स को ही फोलो करने लगते हैं। किसी को ये नहीं पता होता कि अब जब उसे कोई टिप्प्न्नी कर रहा है तो वह उसे कैसे धन्यवाद कर सकता, आदि आदि। कहने का मतलब ये कि अब हमारा परिवार, हिन्दी ब्लॉग जगत का परिवार इतना बड़ा तो हो ही चुका है कि हम में से कुछ ब्लोग्गेर्स नियमित रूप से नए ब्लोग्गेर्स का स्वागत करें और उन्हें प्रोत्साहित करें। मुझे खूब पता है जब कोई नयी नयी पोस्ट लिखता है और काफी दिन बीतने के बाद भी कोई प्रतिक्रया नहीं आती तो उसे कैसा महसूस होता है।

इसलिए भाई मैंने तो ये सोच लिया है कि, बड़े भाई उड़नतश्तरी जी के पदचिन्हों पर चलते हुए नए ब्लॉगर को भरपूर समर्थन और प्रोत्साहन दूंगा, वैसे असली कारीगरी तो तब शुरू होगी, जब भगवान् की कृपा से जल्दी ही अपना कंप्युटर ले लूंगा। मेरी तो आप सबसे गुजारिश है कि नए मित्रों का स्वागत करें। यकीन मानें आपको जितनी खुशी मिलेगी उसका एहसास उन नए मित्रों को भी हो सकेगा। आशा है मेरी प्रार्थना आपको स्वीकार्य होगी.

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