राजनीती


राजनीती

साभार www.cartoonpanna.blogspot.com

बड़ी ही शर्मनाक स्थिति है कि आजकल अध्यापन के क्षेत्र में कदम रखने वाले इस तरह की हरकत कर इस पेशे को बदनाम करने पर तुले हैं . ..


एक बात और कहना चाहूगा कि जरा साहित्य पर दया कीजिये और मोहल्ला, भड़ास जैसे ब्लोग्स को बंद कर दीजिये ...
आशा करता हू .. सुझाव पसंद आयेगा ..
आप सभी मुझसे काफी बड़े और योग्य हैं .. लेकिन ये होते हुए मैं नही देख सकता कि मीडिया माध्यमो को बेहूदगी का अड्डा बना दिया जाए ... नाम मैं किसी के नही लूगा पर आप सभी समझदार हैं ....

होली का हुड़दंग


आज ही अपने जन्मस्थान गाँव पोंडरी से होली मना कर वापिस लौटा हूँ । पोंडरी etah जिले का एक महत्वपूर्ण गाँव है . ये मैं अपने गाँव की तारीफ नही कर रहा हूँ . ये अपने एतिहासिक महत्त्व की वजह से प्रसिद्द है, ये फ़िर कभी बताउगा।
हमारे बृज क्षेत्र की होली का हुड़दंग अपनी अलग पहचान रखता है और प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी हमारे यहाँ एक उत्सव का आयोजन रहाबचपन से ही मै होली के तमाम किस्से अपने बड़ों से सुनाता आ रहा हूँ जिसने मेरे दिमाग में उनके समय की होली की एक छवि बना दी है। ढोलक की dhap kee आवाज के साथ राग छेडते हुलियारे होली के रंग को दुगना कर देते थेउन होली की यादो को मैं अपने बाबा बोहरे रमेश चंद्र शर्मा की आँखों में झलकते हुए साफ देख रहा थाहोली के गायन की आवाज को सुनकर दूर-दूर से लोग खिचे चले आते थे ये एहसास मुझे अचम्भे में दल गया था
अपने आयोजित किए गए कार्यक्रम पर मेरा जो आत्मविश्वास था उसे बाबा की बातो ने एक पल में हवा कर दिया था । उनके लिए हमारा आयोजन सिर्फ़ बेहूदगी भरा था और कुछ नही । कुछ हद तक मै भी उनसे सहमत था।


आज हमारे होली मना के पर्याय ही बदल गए हैंजहा सुबह जौ के दानो के साथ लोग आपस में गले मिलकर प्रेम की अभिव्यक्ति करते थे आज उसकी जगह शराब के साथ होली के दिन की शुरुआत ने ले ली हैहोली का त्यौहार भी पुरी तरह से hitech हो गया हैहोली के ह्य्लियारों के होली geeton की जगह अब बड़े-बड़े speakars ने लेली हैफिल्मी गीतों पर झूमआते युवा होली पर आम नजारा हैहोली के मानाने पर सवालिया निशान खड़ा करता मेरे बाबा का सवाल मुझे अब भी सता रहा है
क्या तुम्हारा यह बेहूदा तरीका सही mayano में होली का आयोजन है?
मुझे नही लगता की यह केवल हमारे यहाँ की कहानी है मै पेशे से संवाददाता हूँ और उस आधार पर ये बता रहा हूँ की होली का हम बदल चुके हैं और उसके दोषी भी हम ही हैं। कल के तमाम अख़बार होली की खबरों से रँगे होंगे और तमाम खबर हमारा मुह chidha रही होंगी।
सवाल फ़िर वही क्या हम अपनी आने वाली पीढी को एक सभ्य समाज दे पा रहे हैं

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