प्रस्तुतकर्ता
janane_ka_hak
पर
5:45:00 pm
" मैं दूंढ लाता हूँ"
" मैं दूंढ लाता हूँ"
अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"
किसी बस्ती की गलियों में किसी सहरा के आँगन में ...
तुम्हारी खुशबुएँ फैली जहाँ भी हों मैं जाता हूँ
तुम्हारे प्यार की परछाइयों में रुक के जो ठहरे ............
सफर मैं जिंदिगी का ऐसे ख्वाबों से सजाता हूँ
तुम्हारी आरजू ने दर बदर भटका दिया मुझको ............
तुम्हारी जुस्तुजू से अपनी दुनिया को बसाता हूँ
कभी दरया के साहिल पे कभी मोजों की मंजिल पे........
तुम्हें मैं ढूँडने हर हर जगह अपने को पाता हूँ
हवा के दोष पर हो कि पानी की रवानी पे .............
तुम्हारी याद में मैं अपनी हस्ती को भुलाता हूँ
मुझे अब यूँ ने तड़पाओ चली आओ चली आओ ......
चली आओ चली आओ चली आओ चली आओ
अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ .....
जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"...........
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1 टिप्पणियाँ:
these poems are taken from my blog and without my permission. please explain
regards
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